इस मोड़ के आगे हैं बहोत मुश्किल भरे
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रास्ते, बेनूर चेहरे, नंगे दरख़्त,
संकरी गलियां, खंडहर
की ख़ामोशी, इक
सवालिया
निशां !
उस टूटे पुल से आगे है ख़्वाबों की ज़मीं,
उजड़ी हुई रात की थकन, चाँद
के बिखरे अक्स, सिमटी
हुई रौशनी, हिराज
ए ज़िन्दगी !
लौट
जाओ कि ये सफ़र नहीं आसां, फिर - -
कभी शीशमहल से ग़र निकल
पाओ हमेशा के लिए, तो
आवाज़ दे लेना, कि
मैं कोई गुज़रा
वक़्त नहीं
जो
कभी न लौट पाऊं तुम्हारे करीब - - - - -
* *
- शांतनु सान्याल
हिराज - नीलाम
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