नीम शब ओ नाआशना दस्तक, दहलीज़
पर रख जाए यूँ कोई ख़ुश्बू ए लिम्स
के निशां नाज़ुक, बेख़ुदी में उठ
चले हैं क़दम यूँ डगमगाए
हुए कहाँ ज़मीं की
सतह और
कहाँ से
इब्तदा ए आसमां, इक वहम पुरअसर, दूर
तक बिखरी है नूर ए माहताब या
किसी की मस्त मैशूद आँखों
से हैं, बह चले रौशनी के
आबशार, हर सिम्त
है जवां ज़िन्दगी,
हर तरफ़
छाया हुआ, तिलस्मी ख़ुमार ही ख़ुमार - - -
- शांतनु सान्याल
नीम शब - मध्यरात्री
नाआशना - अनजाना
लिम्स - स्पर्श
इब्तदा - शुरुआत
वहम - भ्रान्ति
मस्त मैशूद - मदहोश
आबशार - झरना
तिलस्मी ख़ुमार - जादुई नशा
painting by Angela Treat Lyon