02 सितंबर, 2025

असलियत - -

अक्सर हम भूल जाते हैं ख़ुद की अहमियत,

किसी और की नज़रों में ढूंढते हैं अक्स
अपना, मुमकिन नहीं हर किसी को
ख़ुश करना, हर शै ज़रूरी नहीं
बन जाए घरेलू, कई बार
फ़ीकी पड़ जाती
है मुद्दतों की
तरबियत,
अक्सर
हम भूल जाते हैं ख़ुद की अहमियत । हज़ार
परतों में ढके रहते हैं ख़्वाहिशों के बीज,
बस कुछेक को नसीब होती है उगते
सूरज की झलक, कुछ उभर कर
जी जाते हैं लंबी उमर, कुछ
दम तोड़ जाते ज़मीं के
अंदर, ज़िन्दगी का
फ़लसफ़ा चाहे
जो भी हो,
हर हाल
में हमें
तै करना होता है ज़िन्दगी का सफ़र, जीना
चाहते हैं हर एक पल, चाहे कुछ भी
हो मौत की असलियत, अक्सर
हम भूल जाते हैं ख़ुद
की अहमियत ।
- - शांतनु सान्याल 

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past