12 अगस्त, 2025

बिम्ब के उस पार - -

अबूझ मन खोजता है जाने किसे प्रतिबिम्ब के उस पार, गिरते संभलते रात को खोलना

है सुबह का सिंह द्वार, परछाइयों
का नृत्य चलता रहता है उम्र
भर, दरख़्तों से चाँदनी
उतरती है लिए संग
अपने हरसिंगार,
किस ने देखा
है जन्म
जन्मांतर की दुनिया, अभी इसी पल जी लें
शताब्दियों की ज़िन्दगी, कल का कौन
करे इंतज़ार, समेट लो सभी चौरंगी
बिसात, ताश के घरों को है एक
दिन बिखरना अपने आप,
नीली छतरी के सिवा
कुछ नहीं बाक़ी,
जब टूट जाए
साँसों की
दीवार,
गिरते संभलते रात को खोलना है सुबह
का सिंह द्वार ।
- - शांतनु सान्याल

3 टिप्‍पणियां:



  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 13 अगस्त 2025 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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