मुख़्तसर ज़िन्दगी और चाहतें -
बेइंतहा, उभरते हुए
ग़ुबार के बादल
दूर दूर
तक,
भटकती रूह तलाशे मंज़िल का
निशां, हर सांस बोझिल,
हर चेहरा लगे
बेचैन,
जर्द चाँदनी, फीका फीका सा - -
आसमां, सहमी सहमी
सी हैं दर्द ए
परछाइयाँ !
जाना था और कहीं, जा रहे जाने
कहाँ, किस मोड़ पे छोड़
आए दिल वाबस्तगी,
जाने कहाँ छूटा
तेरे इश्क़ का
कारवां,
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
delicate feeling
बेइंतहा, उभरते हुए
ग़ुबार के बादल
दूर दूर
तक,
भटकती रूह तलाशे मंज़िल का
निशां, हर सांस बोझिल,
हर चेहरा लगे
बेचैन,
जर्द चाँदनी, फीका फीका सा - -
आसमां, सहमी सहमी
सी हैं दर्द ए
परछाइयाँ !
जाना था और कहीं, जा रहे जाने
कहाँ, किस मोड़ पे छोड़
आए दिल वाबस्तगी,
जाने कहाँ छूटा
तेरे इश्क़ का
कारवां,
* *
- शांतनु सान्याल
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