बिखरे हुए पलों को हमने लाख चाहा -
समेटना, कभी आँखों से फिसले
बूंद बूंद, कभी वो ख़ामोश
जले क़तरा क़तरा
दिल के
बहोत अंदर, ढलती हुई रात को हमने
लाख चाहा जकड़ना, कभी वो
पिघलती रही बार बार,
कभी बिखरती
रही तार
तार,
सीने के बहोत अंदर, गुल ए मौसम -
को चाहा हमने बहोत रोकना,
वो जाती रही रुक रुक
के हद ए नज़र,
हम देखते
रहे ऐ
ज़िन्दगी तुझे डूबती नज़रों से बारहा - -
कि कहीं तो दिखाई दे लकीर ए
किनारा, कहीं तो मिले
डूबती कश्ती को
उभरने का
सहारा,
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
Painting by Oscar Rayneri
समेटना, कभी आँखों से फिसले
बूंद बूंद, कभी वो ख़ामोश
जले क़तरा क़तरा
दिल के
बहोत अंदर, ढलती हुई रात को हमने
लाख चाहा जकड़ना, कभी वो
पिघलती रही बार बार,
कभी बिखरती
रही तार
तार,
सीने के बहोत अंदर, गुल ए मौसम -
को चाहा हमने बहोत रोकना,
वो जाती रही रुक रुक
के हद ए नज़र,
हम देखते
रहे ऐ
ज़िन्दगी तुझे डूबती नज़रों से बारहा - -
कि कहीं तो दिखाई दे लकीर ए
किनारा, कहीं तो मिले
डूबती कश्ती को
उभरने का
सहारा,
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
Painting by Oscar Rayneri
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें