कहाँ रुकते हैं रोके ख्वाबों के क़ाफ़िले,
वक़्त मिटाता रहा इश्क़ ए निशां,
रेत पर मुसलसल, कहाँ
मिटते हैं लेकिन
निगाहों के
सिलसिले, हो कोई मौज ए दरिया या
तूफ़ान दीवाना, हर हाल में
ख़ामोश साहिल
देखता है
समन्दर के मरहले, हर दौर का होता
है अपना अलग इन्क़लाब,
अँधेरा घिरते कोई
चिराग़ ए शाम
जले या
न जले, कहाँ रुकते हैं रोके ख्वाबों के
क़ाफ़िले,
* *
- शांतनु सान्याल
मरहले - क़दम, चरण
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by k. juric
वक़्त मिटाता रहा इश्क़ ए निशां,
रेत पर मुसलसल, कहाँ
मिटते हैं लेकिन
निगाहों के
सिलसिले, हो कोई मौज ए दरिया या
तूफ़ान दीवाना, हर हाल में
ख़ामोश साहिल
देखता है
समन्दर के मरहले, हर दौर का होता
है अपना अलग इन्क़लाब,
अँधेरा घिरते कोई
चिराग़ ए शाम
जले या
न जले, कहाँ रुकते हैं रोके ख्वाबों के
क़ाफ़िले,
* *
- शांतनु सान्याल
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