मुस्कुराने की चाहत लिए सीने में,
फिर रात गुज़रेगी नंगे पांव,
सुलगती वादियों से हो
कर, दूर बहोत
दूर, है कहीं
सुबह
की मुलायम हवा या पलकों की -
घनी छांव, कोई दस्तक दे
रहा हौले हौले, या
नरम धूप की
मानिंद,
निःशर्त, तेरी मुहोब्बत जगाती है,
मुझे कच्ची नींद से रह रह
कर, आख़री पहर ये
कौन है फेरीवाला,
जो आवाज़
देता है,
सुनसान राहों से अक्सर, ज़बरन -
रख जाता है वो शीशे का
खिलौना, मेरी
दहलीज़ के
ऊपर,
सारी रात भिगोती है उसे शबनम,
तमाम रात मेरी साँसे रहती
हैं बोझिल - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
Gin Lammert Pastel & Oil
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiECmxlxfPIr2A1X5emRVEPpvfVR4tKM1LjQwdqvpLoXRjhz5tkpYlt3rs-SyyW9NvK4BbDS_y-ie6eXPxdvyVNo8PNpxgL_ajjPDQlgVAyRkKBVWCyzLyYWuM5o9Iz8T2Bpp35r7Ofv8VU/s1600/landscape+artwork+021.JPG
फिर रात गुज़रेगी नंगे पांव,
सुलगती वादियों से हो
कर, दूर बहोत
दूर, है कहीं
सुबह
की मुलायम हवा या पलकों की -
घनी छांव, कोई दस्तक दे
रहा हौले हौले, या
नरम धूप की
मानिंद,
निःशर्त, तेरी मुहोब्बत जगाती है,
मुझे कच्ची नींद से रह रह
कर, आख़री पहर ये
कौन है फेरीवाला,
जो आवाज़
देता है,
सुनसान राहों से अक्सर, ज़बरन -
रख जाता है वो शीशे का
खिलौना, मेरी
दहलीज़ के
ऊपर,
सारी रात भिगोती है उसे शबनम,
तमाम रात मेरी साँसे रहती
हैं बोझिल - -
* *
- शांतनु सान्याल
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