वो कोई ख़ूबसूरत फ़रेब था, जिसने
मुझे ख़ुद से तारुफ़ कराया, वो
कोई आईना था, शायद
जिसने वजूद को
सोते से है -
जगाया,
रहनुमाओं के भीड़ में थी लापता - -
कहीं मेरी मंज़िल, मुमकिन
है, वो कोई बिखरता
ख्वाब ही था
जिसने,
बिखरने से पहले है मुझे बचाया, न
देख फिर मुझे, यूँ हैरत भरी
निगाह से, मैं नहीं
कोई धनक
रंगीन,
कि उभर के गुमशुदा हो जाऊंगा - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by giti ala
मुझे ख़ुद से तारुफ़ कराया, वो
कोई आईना था, शायद
जिसने वजूद को
सोते से है -
जगाया,
रहनुमाओं के भीड़ में थी लापता - -
कहीं मेरी मंज़िल, मुमकिन
है, वो कोई बिखरता
ख्वाब ही था
जिसने,
बिखरने से पहले है मुझे बचाया, न
देख फिर मुझे, यूँ हैरत भरी
निगाह से, मैं नहीं
कोई धनक
रंगीन,
कि उभर के गुमशुदा हो जाऊंगा - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by giti ala
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें