उस भीड़ में तुम भी थे शामिल,
अब न पूछो किसने किया
था, मुझे लहूलुहान
पहले, उन
पत्थरों
में न था किसी का नाम खुदा -
हुआ, तमाशबीन और
गुनाहगारों में फ़र्क़
था बहुत
कम,
अलफ़ाज़ अपनी जगह लेकिन
हिस्सेदारी कम न थी,
ख़ामोश ज़ुल्म
को देखना
भी है
ख़ुद से दग़ाबाज़ी, ग़र ज़मीर -
हो ज़िंदा, सिर्फ़ तनक़ीद
नहीं काफ़ी इंक़लाब
ए ज़िन्दगी
में - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
artist nancy medina 2
अब न पूछो किसने किया
था, मुझे लहूलुहान
पहले, उन
पत्थरों
में न था किसी का नाम खुदा -
हुआ, तमाशबीन और
गुनाहगारों में फ़र्क़
था बहुत
कम,
अलफ़ाज़ अपनी जगह लेकिन
हिस्सेदारी कम न थी,
ख़ामोश ज़ुल्म
को देखना
भी है
ख़ुद से दग़ाबाज़ी, ग़र ज़मीर -
हो ज़िंदा, सिर्फ़ तनक़ीद
नहीं काफ़ी इंक़लाब
ए ज़िन्दगी
में - -
* *
- शांतनु सान्याल
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