बहोत नज़दीक से गुज़री तो है
बाद ए सबा, फिर भी न
जाने क्यूँ दिल में
सुलगते से
हैं अरमां,
इक पुरअसरार सूनापन रहा -
उम्र भर उसे खोने के बाद,
जब कभी वो मिला,
बहोत बुझा
बुझा
सा लगा, न जाने क्यूँ वो चाह
कर भी किसी और का न
हो सका, वो कोई
दिल फ़रेब
बुत
था या बहोत नाज़ुक था मेरा
ईमान, लाख कोशिशों
के बाद, न जाने
क्यूँ दिल
उसे
भूला न सका, वीरान शहर ए
जज़्बात, दोबारा कभी
बसा न सका.
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
blooming reflection
बाद ए सबा, फिर भी न
जाने क्यूँ दिल में
सुलगते से
हैं अरमां,
इक पुरअसरार सूनापन रहा -
उम्र भर उसे खोने के बाद,
जब कभी वो मिला,
बहोत बुझा
बुझा
सा लगा, न जाने क्यूँ वो चाह
कर भी किसी और का न
हो सका, वो कोई
दिल फ़रेब
बुत
था या बहोत नाज़ुक था मेरा
ईमान, लाख कोशिशों
के बाद, न जाने
क्यूँ दिल
उसे
भूला न सका, वीरान शहर ए
जज़्बात, दोबारा कभी
बसा न सका.
* *
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