कोई ख्वाब रंगीन फिर निगाहों में
सजा जाते, तितलियों के परों
से कुछ रेशमी अहसास
काश चुरा लाते,
उसके
मनुहारों में है, इक अजीब सी - -
कशिश, आकाशगंगा को
काश, ज़मीं पे हम
उतार लाते,
उसके
आँखों में झलकती है इक अद्भुत -
सी मृगतृष्णा, असमय ही
सावन को कहीं से,
काश बुला
लाते,
उसकी चाहत में है शामिल तमाम
आसमां, कोई शामियाना
ख़ुशियों से लबरेज़,
काश उसके
सामने
तारों की मानिंद बेतरतीब बिखरा
जाते, कोई ख्वाब रंगीन
फिर निगाहों में
सजा जाते,
* *
- शांतनु सान्याल
art by martha kisling
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdOiZEsu-6Lxe90tzMympTqfjlLZ_g4m5oia04WNhAghzv78-EFiJrQIkQjvLwJfffh6HpAHTgYrjl43a9okEyiZshpKuMbHAelsi1LcfPQwPoj9mq43CX-wEGIcPSbQ3gPPz2ENG2Y3nb/s1600/DSCN2364.JPG
सजा जाते, तितलियों के परों
से कुछ रेशमी अहसास
काश चुरा लाते,
उसके
मनुहारों में है, इक अजीब सी - -
कशिश, आकाशगंगा को
काश, ज़मीं पे हम
उतार लाते,
उसके
आँखों में झलकती है इक अद्भुत -
सी मृगतृष्णा, असमय ही
सावन को कहीं से,
काश बुला
लाते,
उसकी चाहत में है शामिल तमाम
आसमां, कोई शामियाना
ख़ुशियों से लबरेज़,
काश उसके
सामने
तारों की मानिंद बेतरतीब बिखरा
जाते, कोई ख्वाब रंगीन
फिर निगाहों में
सजा जाते,
* *
- शांतनु सान्याल
art by martha kisling
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdOiZEsu-6Lxe90tzMympTqfjlLZ_g4m5oia04WNhAghzv78-EFiJrQIkQjvLwJfffh6HpAHTgYrjl43a9okEyiZshpKuMbHAelsi1LcfPQwPoj9mq43CX-wEGIcPSbQ3gPPz2ENG2Y3nb/s1600/DSCN2364.JPG
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