अभी तक हो तुम इक अहसास ए
ख़ुश्बू, सिर्फ़ बिखरती हुई -
जिस्म के इर्द गिर्द,
अभी तक
तुमने
तो छुआ ही नहीं रूह की गहराइयाँ,
कैसे मान लूँ मुहोब्बत को
बेशतर ख़ुदा, वो चाह
जो बना दे मुझे
विषहर,
ले चल ये दोस्त मुझे उसी राह पर !
जहाँ आत्म अहंकार को मिले
मुक्ति, जहाँ अपनत्व
का दायरा हो जाए
असीमित,
ढाल
मुझे अपनी चाहत में इस तरह कि
ज़िन्दगी बन जाए अटूट
कोई मिट्टी का घड़ा,
सोख ले तमाम
दर्द अपने
या पराए दिल की सतह पे ख़ामोश,
नफ़स दर नफ़स !
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
Paintings By Elizabeth Blaylock
ख़ुश्बू, सिर्फ़ बिखरती हुई -
जिस्म के इर्द गिर्द,
अभी तक
तुमने
तो छुआ ही नहीं रूह की गहराइयाँ,
कैसे मान लूँ मुहोब्बत को
बेशतर ख़ुदा, वो चाह
जो बना दे मुझे
विषहर,
ले चल ये दोस्त मुझे उसी राह पर !
जहाँ आत्म अहंकार को मिले
मुक्ति, जहाँ अपनत्व
का दायरा हो जाए
असीमित,
ढाल
मुझे अपनी चाहत में इस तरह कि
ज़िन्दगी बन जाए अटूट
कोई मिट्टी का घड़ा,
सोख ले तमाम
दर्द अपने
या पराए दिल की सतह पे ख़ामोश,
नफ़स दर नफ़स !
* *
- शांतनु सान्याल
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