रात की अपनी हैं गहराइयाँ
फिर भी निगाहों में
आख़री पहर
किसी ने
सजा दी, चुपके से स्वप्नील
कहानियाँ, निजात न
मिली उम्र भर दर्द
ओ ग़म से
मुझे,
फिर भी दिल को छूती रहीं -
कहीं न कहीं अनजाने
इश्क़ की वो हसीं
परछाइयाँ,
वो दूर हो के भी है, रूह से यूँ
वाबस्ता, गुल खिले
बग़ैर महकती
है मेरी
तन्हाइयां, रात की अपनी हैं
गहराइयाँ - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
night dance
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फिर भी निगाहों में
आख़री पहर
किसी ने
सजा दी, चुपके से स्वप्नील
कहानियाँ, निजात न
मिली उम्र भर दर्द
ओ ग़म से
मुझे,
फिर भी दिल को छूती रहीं -
कहीं न कहीं अनजाने
इश्क़ की वो हसीं
परछाइयाँ,
वो दूर हो के भी है, रूह से यूँ
वाबस्ता, गुल खिले
बग़ैर महकती
है मेरी
तन्हाइयां, रात की अपनी हैं
गहराइयाँ - -
* *
- शांतनु सान्याल
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