घनीभूत भावनाएं चाहती हैं विगलन
आकाश से बादल तो हटाए कोई,
हर शख्स यहाँ करता है
इन्क़लाब की बातें,
बुझते हुए
मशाल तो उठाए कोई, फिर चौराहों -
में है कानाफूसी का आलम,
मंचों में चल रहा फिर
फ़रेबी खेल, भीड़
से निकल,
सच का आईना, इन चेहरों को दिखाए
तो कोई, हर आदमी यहाँ दिखा
रहा सब्ज़ बाग़, लिए
हाथों में वादों
के लम्बी
फ़ेहरिस्त, इक मुद्दत से लम्हा लम्हा
जो मर रहा है, तंग गली कूचों में
कहीं, उस गुमनाम चेहरे
से इन्हें मिलवाए
तो कोई।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
abstract-art-paintings-acrylic
आकाश से बादल तो हटाए कोई,
हर शख्स यहाँ करता है
इन्क़लाब की बातें,
बुझते हुए
मशाल तो उठाए कोई, फिर चौराहों -
में है कानाफूसी का आलम,
मंचों में चल रहा फिर
फ़रेबी खेल, भीड़
से निकल,
सच का आईना, इन चेहरों को दिखाए
तो कोई, हर आदमी यहाँ दिखा
रहा सब्ज़ बाग़, लिए
हाथों में वादों
के लम्बी
फ़ेहरिस्त, इक मुद्दत से लम्हा लम्हा
जो मर रहा है, तंग गली कूचों में
कहीं, उस गुमनाम चेहरे
से इन्हें मिलवाए
तो कोई।
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- शांतनु सान्याल
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