30 नवंबर, 2013

इतनी भी बेक़रारी ठीक नहीं - -

बिखरने दे ज़रा और अंधेरे की स्याही,
इतनी भी बेक़रारी ठीक नहीं,
अभी तलक है लिपटी 
सी सुनहरी शाम 
की रेशमी 
चादर,
बेताब नदी के लहरों को कुछ और - -
राहत तो मिले, डूबने दे तपते
हुए सूरज को और ज़रा,
अभी अभी, अहाते
के फूलों में है 
कहीं 
ख़ुश्बुओं की आहट, अभी अभी तुमने 
देखा है मुझे, ख़ुद से चुरा कर
इत्तफ़ाक़न, थमने दे 
ज़रा जुम्बिश ए 
जज़बात,
जब 
रात जाए भीग चाँदनी में मुक्कमल,
तब रखना मेरा वजूद अपनी 
आँखों में उम्र भर के 
लिए - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 
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evening glow(1)

28 नवंबर, 2013

तुम चाहो तो समेट लो - -

रहने दे मुझे यूँ ही बेतरतीब, बिखरा बिखरा,
हर चीज़ अगर मिल जाए हाथ बढ़ाए,
तो अधूरा सा है ज़िन्दगी का 
मज़ा, न कर उम्मीद 
से बढ़ कर कोई 
ख्वाहिश !
दुनिया की नज़र में पैबंद के मानी जो भी हों, 
लेकिन मेरे लिए है वो कोई शफ़ाफ़ 
आईना, रखता है जो अक्स 
मेरा मुक़रर हर दम,
कि लौट आता 
हूँ मैं वहीँ 
जहाँ से आग़ाज़ ए सफ़र था मेरा, और यही 
वजह है जो मुझे फ़िसलने नहीं देता,
बड़ी राहत ओ चैन से मैं घूम 
आता हूँ शीशे के राहों 
पे चलके तनहा,
चांदनी 
तुम चाहो तो समेट लो अपने दामन में पूरा,
मेरे दिल में है अभी तक रौशनी काफ़ी !
 * * 
- शांतनु सान्याल  

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art by georgia

26 नवंबर, 2013

न जाने क्यूँ - -

न जाने क्यूँ, आज भी इक पहेली सी है 
तुम्हारी पलकों की परछाई, न 
जाने क्यूँ आज भी, जी 
चाहता है तुम्हें, यूँही 
निष्पलक, बस 
देखते रहें,
इक जलता चिराग़ तन्हा और सुदूर -
कोई दरगाह वीरान, न कोई 
दरख़्त दूर दूर तक, न 
ही पत्थरों में 
लिखी 
कोई भूली तहरीर,फिर भी न जाने क्यूँ, 
ज़िन्दगी सिर्फ़ चाहती है, तुम्हारी 
निगाहों में अपना पता 
तलाश करना, 
वो बूंदें !
जो कभी छलकी थीं पुरनम आँखों से - 
तुम्हारे, उन्हीं बूंदों में आज तक 
सिमटी सी है ज़िन्दगी 
अपनी - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 

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daisies

25 नवंबर, 2013

इक बेइंतहा तन्हाई - -

हर इक ज़िद्द पे तुम्हारी, ज़िन्दगी ये बेचारी, -
ख़ामोश जां निसार होती रही, कभी वो 
ख्वाहिश जिसमें, मेरे ज़ख्मों को 
को था सुलगना, कभी वो 
चाहत जिसके लिए 
निगाहों से 
टपके 
बुझे अंगारे, वो तुम्हारे दिल की हसरत जिसमें 
थीं, दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत अमानत,
वो कोई नादिर शीशा था, या कोई 
आईना ए फ़रेब, अक्सर 
तन्हा सोचता है
वजूद मेरा, 
क्या 
चीज़ थी जिसने मुझे दीवानगी के हदों से कहीं 
आगे ले गई, जहाँ जिस्म ओ रूह के 
दरमियां फ़ासला, महज़ कुछ 
लम्हों में हो तक़सीम,
तुम्हारी उनींदी 
नाज़ुक 
पलकें, और मेरी साँसों के लिए, फ़ैसले की वो 
आख़री शब, ये इश्क़ था तुम्हारा या 
आज़माइश बा ज़िन्दगी ! अब 
जबकि बुझ चुकी है शमा, 
इन बिखरे परों 
में कहाँ है 
मेरा अक्स झुलसा हुआ, और कहाँ है तुम्हारी 
निगाहों की संदली साया, कहना आसान 
कहाँ, दूर तक है सिर्फ़ धुंध गहराता,
मुसलसल इक बेइंतहा 
तन्हाई - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 
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Watercolors by-Neadeen masters-Art

17 नवंबर, 2013

कुछ और वक़्त लीजिए - -

अभी तो सिर्फ़ देखा है मुझे, चिलमनों 
की सरसराहट में कहीं तुमने,
अभी राज़े मुहोब्बत है 
बहोत बाक़ी !
न करो अंदाज़ ए बारिश हवाओं के - -
रुख़ से, कहीं रह न जाए दिल 
ही दिल में, भीगने की 
ख्वाहिश, किसी 
मलऊन 
सहरा की मानिंद, अभी तो ज़िन्दगी -
का सफ़र है, नुक़ता ए आग़ाज़ 
पे कहीं, अभी निगाहों 
से परे है मेरे 
दिल की 
ज़मीं, अभी तक राह आतिश, तुमने -
देखा ही नहीं, कुछ और वक़्त 
लीजिए ख़ालिस सोने 
में बदलने के 
लिए !

* * 
- शांतनु सान्याल 

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art by barbara fox 3

16 नवंबर, 2013

मुद्दतों से - -

इक अनबूझ पहेली है, ये रात 
चाँद और सफ़र आसमां 
का, ख़ामोश लब, 
कह न सके 
कुछ 
भी, मुख़्तसर उम्र थी मेरी - - 
दास्तां का, समेट लो 
तुम भी दामन 
वक़्त से 
पहले,
ज़ामिन कुछ भी नहीं सितारों 
के कारवां  का, कहाँ 
मिलती है यूँ भी 
मुकम्मल 
रौशनी,
अँधेरा है वाक़िफ़ दोस्त मुद्दतों 
से मेरी ज़िन्दगी का !

* * 
- शांतनु सान्याल 
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Chinese Bamboo Painting

15 नवंबर, 2013

कुछ वक़्त और चाहिए - -

 लहरों की हैं, शायद अपनी ही मजबूरियां,
कहाँ रहती हैं, किनारों से लग कर 
हमेशा ! न कहो मुझसे, कि 
तुम्हें है मुहोब्बत
बेपनाह,
मौसमी हवाओं का भरोसा क्या, पलक -
झपकते न उड़ा ले जाए बाम ए 
हसरत कहीं, न मिलो 
इस तरह कि 
ज़िन्दगी 
भूल जाए तफ़ावत, हक़ीक़त ओ ख्वाब 
के दरमियां, अभी अभी तुमने 
सिर्फ़ अहसास किया है 
मुझको, कुछ 
वक़्त -
और चाहिए अहसास ए बेक़रारी को, - -
अक़ीदा से ईमां तक पहुँचने 
के लिए - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 
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art by _mucci

14 नवंबर, 2013

न करना मुकम्मल यक़ीं - -

चलो तोड़ दिया हमने भी अहद क़दीमी,
कब तक कोई जीए, यूँ सीने में
समेटे अहसास ज़िन्दान,
तुम्हारा वजूद चाहे
इक मुश्त खुली
हवा !
फिर फ़िज़ाओं में है दस्तक बाद ए सुबह
की, तुम्हें हक़ है बेशक, परवाज़ -
वादी, चलो हमने भी खोल
दिया सीने के सभी
दरवाज़े क़फ़स,
बुलाती हैं
फिर तुम्हें, फूलों से लबरेज़ गलियां, न -
भूलना लेकिन, मेरे दिल का वो
दाइमी पता, बहुत मुश्किल
होगी अगर भटक
जाओ राह
चलते, हरगिज़ मौसम पे मेरी जां, न - -
करना मुकम्मल यक़ीं, न जाने
किस मोड़ पे दे  जाए, इक
ख़ूबसूरत धोका - -

* *
- शांतनु सान्याल
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Realistic paintings of Russian painter Vladimir Maksanov

13 नवंबर, 2013

इक पोशीदा दहन - -

उन निगाहों में कहीं, है इक पोशीदा दहन, 
बारहा जलता है मेरा जिगर, बेशुमार 
पिघलता है, मोम सा ज़ख़्मी 
बदन,  न जाने उसकी 
हद ए ख्वाहिश
है क्या -
हर इक सांस में मेरी उभरती है उसकी - -
चाहत, उन पलकों के हरकत से 
गिरती उठती है, मेरे दिल 
की नाज़ुक धड़कन, 
ख़ुदा जाने 
क्या है उसके दिल में, कोई राज़े रज़ामंदी,
या ख़ामोश क़त्ल का इमकां, हर 
लम्हा इक बेक़रारी, हर 
वक़्त ज़िन्दगी पे 
जैसे इक 
ख़ौफ़ गरहन ! कभी वो रोशन अक्स तो - 
कभी मैं, महज़ इक टूटा दरपन,
उन निगाहों में कहीं, है 
इक पोशीदा 
दहन, 

* *
- शांतनु सान्याल 

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dreamy path

12 नवंबर, 2013

आतिश ए दायरा - -

कहीं न कहीं आज भी उसके दिल में 
है अफ़सोस ज़रा, वो चाह कर 
भी मुझसे जुदा हो न 
सका, कहीं न 
कहीं मैं 
भी भीड़  में तन्हा ही रहा, चाह कर 
भी किसी से जुड़ न सका, 
इक अजीब सा रहा 
यूँ सिलसिला 
दरमियां
अपने, मुझसे ताउम्र बुतपरस्तिश 
न गई, और वो पत्थर से 
निकल कभी ख़ुदा 
हो न सका, 
इक -
तरसीम ए ख्बाब या इश्क़ हक़ीक़ी, 
न जाने क्या थी उसकी 
तिलस्मी चाहत,
लाख चाहा 
मगर 
उस मरमोज़ आतिश ए दायरा के 
बाहर कभी निकल ही न 
सका - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 


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forget me not - - 

11 नवंबर, 2013

ख़ुश्बुओं में डूबा अहसास - -

फिर लिखो कभी वही ख़ुश्बुओं में डूबा 
अहसास, फिर रख जाओ कभी 
चुपके से मेरे सिरहाने, वही 
ख़त, जो कभी बेख़ुदी 
में यूँ ही लिखा
था दिल 
में, दुनिया से छुपा कर तुमने, फिर -
खुले हैं दरीचे बहार के, फिर 
दिल चाहता है इज़हार 
ए वफ़ा करना,
इक उम्र 
से हमने नहीं देखा खुला आसमां, फिर 
कहीं से ले आओ टूटते तारों को 
ढूंढ़ कर, दिल की तमन्ना 
है फिर तेरी मांग पर 
कहकशां को 
सजाना !
* * 
- शांतनु सान्याल 
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dream on window

10 नवंबर, 2013

बिखर न जाए कहीं - -

पुरअसरार इस रात की ख़ामोशी, कोई 
नज़दीक बहोत लेकिन नज़र न 
आए, निगाहों में समेटे 
चांद का अक्स 
इस तरह,
खुली वादियों में दिल कहीं भटक न -
जाए, क़सम है तुमको न खेलो 
डूबती साँसों से इस क़दर, 
साहिल के क़रीब 
आ कर कहीं 
इश्क़ -
मज़तरब, बेतरतीब लहरों में बिखर न 
जाए - -
* * 
- शांतनु सान्याल 

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artist bobbie price

06 नवंबर, 2013

शबनमी स्पर्श - -

निःशब्द गिरती वो बूंदें, और दिल की नाज़ुक 
सतह, बहोत मुश्किल था, उसे रूह 
तक तहलील करना, न पूछे 
कोई उसकी ख़ामोश 
लबों की दास्तां,
यूँ उतरती 
गई दिल की गहराइयों में दम ब दम, कि हम 
भूल गए वजूद तक अपना, आईने की 
शिकायतें रहीं बेअसर, कुछ इस 
तरह से खोए रहे हम, कब 
गुज़री शब महताबी,
कब बिखरे 
शब गुल हमें ख़बर ही नहीं, कल रात हम न -
थे हमारे अंदर, नादीद क़ब्ज़ा किसीका 
जिस्म ओ जां पे, और खुली 
पलकों से हम देखते 
रहे उसकी 
ख़ूबसूरत मनमानी ! जैसे शिकारी ख़ुद ब - -
ख़ुद होना चाहे शिकार - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 
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deanna walter s art

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