अंतःसलिला बहती है अंतरतम की गहराई में, मौन प्रणय साथ निभाए जीवन की उतराई में,
सभी रंग मिल कर हो जाते हैं सहज एकाकार,
महत शांति मिलती है दिव्य वृक्ष की परछाई में,
वक्षस्थल के अंदर बहती है, अंतहीन प्रवाहिनी
बिन डूबे मिले न मोती सागर के अनंत खाई में,
अनमोल शल्कों को देह से उतरना है एक दिन,
प्रत्याभूति कुछ भी नहीं, नियति की सिलाई में,
- - शांतनु सान्याल
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