14 मार्च, 2024

ख़ामोशी का सफ़र - -

अजीब सी है ख़मोशी दूर ठहरा हुआ तूफ़ां सा लगे है,

हाकिम का ख़ुदा हाफ़िज़, मुझे देख के हैरां सा लगे है,

उठ गई बज़्म ए अंजुम रात भी है कुछ लम्हे की साथी,
आंख की गहराइयों में डूबता  हुआ कहकशां सा लगे है,

सारे उतरन उतरते गए, नज़दीक से देखने की ज़िद्द में,
दाग़ ए दिल देखते ही आईना बहोत पशेमां सा लगे है,

लफ्ज़ तक सिमट के रह जाते हैं सभी तरक़्क़ी के दावे
इंतिख़ाब क़रीब है वज़ीर कुछ ज़्यादा परेशां सा लगे है,

रक़ीब ओ रफीक़ में फ़र्क़ करना अब है बहुत मुश्किल
जिसने खंज़र उठाया, वो शख़्स मेरा आश्ना सा लगे है,
- - शांतनु सान्याल


8 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन अभिव्यक्ति।शानदार रचना सर।
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ मार्च २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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