दिल की बात हर्फ़ ए आग बन अल्फ़ाज़ से उभरे, इंसानियत का तक़ाज़ा, हर एक आवाज़ से उभरे,
महदूद नज़रिया रुक जाती है मज़ाहिब के बाड़ में,
इक नया समा, आज़ाद परिंदे के परवाज़ से उभरे,
लहू का रंग एक सा है, फिर सलूक इम्तियाज़ी क्यूं,
एक दूजे के लिए दुआएं ख़ूबसूरत अंदाज़ से उभरे,
हर एक इंसां को चाहिए ज़िन्दगी के वाज़िब हक़ूक़,
दरख़्त ए एतिहाद, इस ज़मीं पे बहुत नाज़ से उभरे,
- - शांतनु सान्याल
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