रंग गहरा ऐसा कि निगाह से रूह में उतर जाए, छुअन ऐसी हो कि रिसते घाव छूते ही भर जाए,
कुछ जुड़ाव जो दूर रह कर भी जिस्म को जकड़े,
ख़ुश्बू वो कि रगों से बह कर दिल में बिखर जाए,
हर एक मुस्कुराहट में, हज़ार फूलों की पंखुड़ियां,
हर सिम्त गुलशन दिखाई दे जहां तक नज़र जाए,
इक अजीब सी कशिश है उस तिलस्मी निगाह में,
दिन ढलते ही बहकते क़दम अपने आप घर जाए,
वफ़ा ऐसी हो कि सात जन्मों के परे भी रहे ज़िंदा,
जिस्म का क्या, लाज़िम है कोहरे में कहीं मर जाए,
बेशुमार हसरतें अंतहीन चाह बस उम्र है मुख़्तसर,
सांस के झूले जाने किस पल अचानक ठहर जाए,
- - शांतनु सान्याल
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 24 मार्च 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंहोली की शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंवाह.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
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