ए'तराफ़ कर न सके,
गहराइयों तक हैं धुंध दिल अपना साफ़ कर न सके,
दोहरे म'यार की सियासत है मीर ए कारवां के अंदर,
फिर भी वो बेदार ज़मीर को मेरे ख़िलाफ़ कर न सके,
दर्दे मुहोब्बत अपनी जगह ज़िंदगी का सच एक तरफ़,
जीने की सज़ा ले कर ख़ुद को कभी माफ़ कर न सके,
- - शांतनु सान्याल
वाह वाह
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 1 मई अप्रैल 2024को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम
बहुत सुन्दर
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