तमाम आलोक स्रोत बुझ जाते हैं अपने आप,
जब अस्तित्व से कोई निकटस्थ तारा टूटजाता है, महाशून्य में रह जाता है
केवल अनंत निस्तब्धता का
साम्राज्य, दरअसल,
अबूझ जीवन
विलम्ब से
जान
पाता है हृदय की मौन भाषा, कुछ कविताएं
अमूल्य अंगूठी की तरह खो जाती हैं
समय के गर्त में, जिसे उम्र भर
हम खोजते रह जाते हैं बस
स्मृति कुंज में पड़े रहते हैं
कुछ टूटे हुए अक्षर के
कंकाल, कोहरे में
भटकती रह
जाती है
प्रणय
आत्मा, समाधिस्थ हो जाती हैं देह की दुनिया,
पत्थरों पर पड़ा रह जाता है फूलों का
स्तवक निष्प्राण सा गंध विहीन ।
- - शांतनु सान्याल
सुन्दर
जवाब देंहटाएं💐 आपका असंख्य आभार ।🙏
हटाएंवाह...हृदय को झकझोरने वाली पंक्तियां...''कुछ कविताएं
जवाब देंहटाएंअमूल्य अंगूठी की तरह खो जाती हैं-
समय के गर्त में,
जिसे उम्र भर
हम खोजते रह जाते हैं बस...''
💐 आपका असंख्य आभार ।🙏
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं💐 आपका असंख्य आभार ।🙏
जवाब देंहटाएं💐 आपका असंख्य आभार ।🙏
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