महकती सी फ़िज़ा चाँदनी उतर चली है मद्धम मद्धम, नाज़ुक दिल की परतों पे गिर रही है क़तरा ए शबनम,
लरज़ते ओंठ पे, गोया बिखर चली हैं नशीली सुर्ख़ियां,
चल रहे हैं सितारों की ज़मीं पे हाथ थामे दम - ब -दम,
बहुत ख़ूबसूरत है ज़िन्दगी का ये फ़लसफ़ा ए रहगुज़र,
हज़ार मुश्किलें, रुकावटें फिर भी रवां रहे अपने क़दम,
कहाँ पे मिले किस की तलाश थी कुछ भी याद न रहा,
ज़रुरी नहीं ख़ालिस निकले, हर चेहरा राहत ए मरहम,
- - शांतनु सान्याल
हज़ार मुश्किलें, रुकावटें फिर भी रवां रहे अपने क़दम,
कहाँ पे मिले किस की तलाश थी कुछ भी याद न रहा,
ज़रुरी नहीं ख़ालिस निकले, हर चेहरा राहत ए मरहम,
- - शांतनु सान्याल
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 07 अप्रैल 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
हटाएंसुन्दर
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जवाब देंहटाएंकहाँ पे मिले किस की तलाश थी कुछ भी याद न रहा,
ज़रुरी नहीं ख़ालिस निकले, हर चेहरा राहत ए मरहम...
वाह! सराहनीय सृजन 👌
वाह! लाजवाब👌
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