05 अप्रैल, 2024

महकती चाँदनी - -

महकती सी फ़िज़ा चाँदनी उतर चली है मद्धम मद्धम,

नाज़ुक दिल की परतों पे गिर रही है क़तरा ए शबनम,
लरज़ते ओंठ पे, गोया बिखर चली हैं नशीली सुर्ख़ियां,
चल रहे हैं सितारों की ज़मीं पे हाथ थामे दम - ब -दम, 
बहुत ख़ूबसूरत है ज़िन्दगी का ये फ़लसफ़ा ए रहगुज़र,
हज़ार मुश्किलें, रुकावटें फिर भी रवां रहे अपने क़दम,
कहाँ पे मिले किस की तलाश थी कुछ भी याद न रहा,
ज़रुरी नहीं ख़ालिस निकले, हर चेहरा राहत ए मरहम,
- - शांतनु सान्याल

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 07 अप्रैल 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

    जवाब देंहटाएं

  2. कहाँ पे मिले किस की तलाश थी कुछ भी याद न रहा,
    ज़रुरी नहीं ख़ालिस निकले, हर चेहरा राहत ए मरहम...
    वाह! सराहनीय सृजन 👌

    जवाब देंहटाएं

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past