छूना चाहता हूं उसे समीप से, स्वर्ण मीन सा वो डूबता चला जाता है गहन अंधकार में, उलंग
देह बढ़ता जाता है उसकी ओर पूर्णग्रासी
चंद्र की तरह, अथाह जलराशि के तल
को ढूंढता हूँ मैं मायावी इस संसार
में, स्वर्ण मीन सा वो डूबता
चला जाता है गहन
अंधकार में ।
हरित नील
रंगों के
जल
बिंदु खेलते हैं उन्माद लहरों के साथ, जुगनुओं
का नृत्य चलता है रात भर, अद्भुत एक
आभास जीवित रखती है मुझे उस
गहराई में प्राणवायु विहीन,
शेष प्रहर में वृष्टि भिगो
देती है अंदर तक मरु
धरा को, उर्वर
भावनाओं
में पुनः
खिल
उठते हैं नन्हें नन्हें अनाम फूल, जीने की अदम्य
उत्कंठा अशेष रहती है कृष्ण मृग के चीत्कार में,
स्वर्ण मीन सा वो डूबता चला जाता
है गहन अंधकार में ।
- - शांतनु सान्याल
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 11 अप्रैल 2024 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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💐 आपका असंख्य आभार ।🙏
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं💐 आपका असंख्य आभार ।🙏
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएं💐 आपका असंख्य आभार ।🙏
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएं💐 आपका असंख्य आभार ।🙏
हटाएंवाह! शान्तनु जी ,बहुत खूबसूरत सृजन
जवाब देंहटाएं💐 आपका असंख्य आभार ।🙏
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