21 अप्रैल, 2024

वो नहीं लौटे - -

चारों तरफ असंख्य चेहरे फिर भी शून्यता दूर

तक, हर कोई बढ़ चला है अनजान सफ़र
में, हाथों में थामे हुए अनेक रहस्यमयी
तख्तियां, न जाने कौन है जो उन्हें
हाँक कर ले जा रहा है सुदूर
मिथक देश की ओर,
जहां बसते हैं
देवदूत,
उड़ती हैं महाकाय रंगीन परों की तितलियाँ, हर
कोई बढ़ चला है अनजान सफ़र में, हाथों
में थामे हुए अनेक रहस्यमयी तख्तियां ।
वो सभी चेहरे हैं भाषा विहीन, मूक
कदाचित बधिर भी, उनकी
आँखे हैं पथराई सी,
मशीन मानव की
तरह वो बढ़े
जा रहे हैं
नंगे
पांव ओंठों में लिए हुए शताब्दियों की अनबुझ
प्यास, शायद उन्हें है कल्प सरोवर की
तलाश, जहां पहुंच कर मिल जाए
जीवन को शाप मुक्ति, लुप्त
हो जाएं सभी चेहरे से
असमय की झुर्रियां,
हर कोई बढ़
चला है
अनजान सफ़र में, हाथों में थामे हुए अनेक
रहस्यमयी तख्तियां ।
- - शांतनु सान्याल

6 टिप्‍पणियां:

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past