देखता हूँ पारदर्शी इत्रदान के आर पार, अनगिनत पुष्पों का अंतहीन हाहाकार,
असीम प्रणय को देना होता है बलिदान,
सजल आँख पर उष्ण बूंदों का वंदनवार,
समय के संग ढलना ही है जीवन सारांश,
बहुत मुश्किल है चलना स्वप्नों के अनुसार,
दो स्तम्भ के मध्य तनी रहती है माया डोरी,
टूटने पर, किसी को नहीं कोई भी सरोकार,
- - शांतनु सान्याल
वाह
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