04 मई, 2024

द्विधा - -

सिर्फ़ निष्पलक देखते रहे, शब्दों के अमलतास

अपने आप मौन झर से गए, बहुत कुछ कहा
था उसने नयन कोण से, बरसने से पहले
कुछ जल बिंदु पलकों के तीर ठहर
से गए, न जाने क्या बात थी
हृदय तल की गहनता में,
कुछ कोंपलें निकले
ज़रूर लेकिन
अल्पायु में
मर से
गए, शब्दों के अमलतास अपने आप मौन झर से
गए । कोई ढूंढता रहा रेत की नदी में विलुप्त
जल स्रोत का पता, हवाएं मिटा देती हैं
सभी पदचिन्हों के निशान, यात्रा
नहीं रुकती किसी के लिए,
आमंत्रण नहीं करता
कोई भी रस्ता,
सुदूर पहाड़ों
में जल
रहे हैं
मायाविनी अरण्य, स्मृति भस्म में रह जाएंगे सभी
अमर लता, कोई ढूंढता रहा रेत की नदी में
विलुप्त जल स्रोत का पता ।
- - शांतनु सान्याल

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