न जाने कितनी योजन दूर है सुबह की पहली
किरण, ताहम रात का आँचल है सितारों
का शुक्रगुज़ार, तुम लांघ सकते नहीं
सुलगते हुए बंदिशों के ज़ंजीर,
फिर भी मेरी बाहों को है
जां से गुज़र जाने का
इंतज़ार, ज़रूरी
नहीं सभी
नदियां
पा
जाएं समंदर की अंतहीन गहराई, राह चलते
हर शख़्स नहीं होता दिल से मददगार,
दवा के नाम पर झूठी तस्सली ही
सही, किसे ख़बर कौन सी
दुआ हो जाए असरदार,
हर कोई चाहता है
पाना जिस्मानी
ख़ुशी, बहुत
मुश्किल
है पाना
रूह
तक उतरने वाला दिलदार, इस मोड़ के आगे
भी हैं अनगिनत मंज़िलों के रास्ते, आसां
नहीं पहचानना रहनुमाई का किरदार,
न जाने कितनी योजन दूर है सुबह
की पहली किरण, ताहम रात
का आँचल है सितारों
का शुक्रगुज़ार ।
- - शांतनु सान्याल
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 30 मई 2024 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
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