साँझ और बिहान के मध्य है आलोकित उत्थान -
पतन, अमावस हो या चाँदनी रात, शुक्र ग्रह
की रहती है हर सांस को तलाश,
ईशान कोण में जब कभी
उभरते हैं श्यामवर्णी
मेघ दल, कुछ
पल के
लिए
ही सही बुझता सा लगे जीवन दहन, साँझ और बिहान के मध्य है आलोकित उत्थान -
पतन । शब्दों के परे रहती हैं कुछ
अनुभूतियां, एक अनुरागी
छुअन जो क्रमशः
जीवाश्म को
लौटा जाते
हैं
विलुप्त स्पंदन, शताब्दियों से थमा हुआ वक़्त पुनः
हो जाता है गतिशील, मृत सीप के सीने में
रहता है झिलमिल प्रणय मोती, टूटे हुए
खोल से झाँकती सी है एक अद्भुत
सप्तरंगी किरण, उन अनमोल
पलों की अंजलि मैं तुम्हें
करना चाहता हूँ पूर्ण
अर्पण, साँझ और
बिहान के
मध्य है
आलोकित उत्थान -पतन ।।
- - शांतनु सान्याल
सुन्दर रचना
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