बुझ गई रात जल के बूंद बूंद सुदूर बस यादों के शरारे रह गए,
कौन डूबा कौन पार हुआ ज़िंदगी में कुछ टूटते किनारे रह गए,
रखे कोई हथेली में, कुछ ओस की क़तरे राहत ए जाँ के लिए
बातख़ल्लुफ़ ही सही, ज़िंदगी में यूं तो हसरतें बेशुमार रह गए,
सूखी नदी की वेदना सिवाय पत्थरों के कोई भी नहीं जानता,
टूटा हुआ पुल ही सही, उम्मीद ए सफ़र दरमियां हमारे रह गए,
सिलसिला ए दोस्ती बनी रहे अपनी जगह बिन दिल मिलाए,
कैलेंडर बदला है, यूं तो अनसुलझे हालात बहुत सारे रह गए ।
- - शांतनु सान्याल
वाह
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार।
हटाएंवाह लाज़वाब रचना सर।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २ जनवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
नववर्ष मंगलमय हो।
आपका हार्दिक आभार।
हटाएंवाह! बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार।
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