21 जनवरी, 2024

निःशब्द शंखनाद - -

कुहासे में डूबे हुए हैं सभी रास्ते, अंधकार ढूंढता है कुछ बिखरे हुए धूप के टुकड़े, कुछ सुख के 

झरे हुए रंगीन पंख,

निद्रित शहर के 

परकोटे पर

है निशाचर 

पाखियों 

का

एक छत्र राजत्व,अंधकार समेटना चाहता है कुछ

बिखरे हुए स्वप्न खंड,

अंधकार ढूंढता है 

कुछ बिखरे हुए 

धूप के टुकड़े,

कुछ सुख 

के झरे 

हुए रंगीन पंख। जन शून्य पथ में बिखरे पड़े हैं 

विजय पताकाएं, 

विच्छिन्न पुष्प 

की पंखुड़ियां, 

अंधकार 

अपने नग्न देह में लपेटना चाहता है सरीसृपों के शल्क,असत्य शपथों 

के उतरन, वो

बुहारता 

चला 

जाता है स्वर्णकारों की गली ताकि मिल जाए कुछ अदृश्य अमूल्य कण, 

जिसे प्रातः बेच 

कर एक दिन 

और जुड़ 

जाए 

जीवन में, समुद्र तट में बेतरतीब बिखरे पड़े 

रहते हैं निःशब्द 

मौन शंख, 

अंधकार 

ढूंढता 

है कुछ बिखरे हुए धूप के टुकड़े, कुछ सुख के झरे हुए रंगीन पंख।

- - शांतनु सान्याल

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