12 जनवरी, 2024

शहर भर चर्चा रहा - -

ना शनास मंज़िल पे कहीं है वो नूर ए अल्वी 
या भटकती है रूह यूँ ही छूने उफ़क रेस्मान, 

रेशमी परों पे हैं तेरी ज़रीफ़ उँगलियों के दाग़ 
उड़ चले हैं,अब्रे ज़ज्बात,यूँ जानिबे आसमान,

ज़ियारतगाहों में जले हैं फिर असर ए फ़ानूस 
जावदां इश्क़ है ये, खिल चले फिर बियाबान,

सरजिंश न थे जामिद, उस हसीं गुनाह के लिए 
सूली से उतरते ही, वो हो चला यूँ ही बाग़ बान,

शहर भर चर्चा रहा, है उसकी वो मरमोज़ अदा 
मीरे कारवां बन चला वो अजनबी सा इन्सान,

तलातुम से उठ चले फिर मसरक़ी फ़लक पे 
सफ़रे ज़ीस्त में चलना, नहीं था इतना आसान,

ये कोशिश के बदल जाए हाक़िम का नज़रिया
हर दौर में दुनिया चाहती है सादिक़ मेहरबान, 

-- शांतनु सान्याल 

अर्थ :   
ना शनास - अज्ञात 
नूर ए अल्वी - दिव्य ज्योति 
उफ़क रेस्मान - क्षितिज रेखा 
ज़रीफ़ - नाज़ुक 
असर ए फ़ानूस - शाम के दीये 
जावदां - अनंत 
सरजिंश - इलज़ाम 
जामिद - ठोस 
मरमोज़ - रहस्मय 
तलातुम - आन्दोलन 
ज़ीस्त - ज़िन्दगी 
सादिक़ - इमानदार
 मसरक़ी फ़लक - पूर्वी आकाश

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 14 जनवरी 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

    जवाब देंहटाएं
  2. तलातुम से उठ चले फिर मसरक़ी फ़लक पे
    सफ़रे ज़ीस्त में चलना, नहीं था इतना आसान
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past