उड़ा ले गई हमें कल रात नसीम ए खिज़ां
या कोई अहसास दीवाना, हमें कुछ
भी ख़बर नहीं, तैरते रहे हम
राहे सिफ़र रात भर !
कभी बादलों के
क़रीब,
कभी चाँद के बहोत नज़दीक, न जाने वो
कौन था, जो छाया रहा जिस्म ओ
जां में इस क़दर, हमें कुछ
भी ख़बर नहीं, सिर्फ़
याद रहा इतना
कि उसकी
आँखों
में थी, इक ऐसी तिलस्मानी दुनिया जहाँ
से लौटना नहीं था अपने वश में !
वो इश्क़ था या बाज़ी ए
मर्ग, कहना है
मुश्किल
हर लम्हा इक नयी ज़िन्दगी हर पल - -
जां से गुज़र जाना - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
या कोई अहसास दीवाना, हमें कुछ
भी ख़बर नहीं, तैरते रहे हम
राहे सिफ़र रात भर !
कभी बादलों के
क़रीब,
कभी चाँद के बहोत नज़दीक, न जाने वो
कौन था, जो छाया रहा जिस्म ओ
जां में इस क़दर, हमें कुछ
भी ख़बर नहीं, सिर्फ़
याद रहा इतना
कि उसकी
आँखों
में थी, इक ऐसी तिलस्मानी दुनिया जहाँ
से लौटना नहीं था अपने वश में !
वो इश्क़ था या बाज़ी ए
मर्ग, कहना है
मुश्किल
हर लम्हा इक नयी ज़िन्दगी हर पल - -
जां से गुज़र जाना - -
* *
- शांतनु सान्याल
आपका हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार ।
हटाएंलाजवाब सृजन आदरणीय 🙏
जवाब देंहटाएं