सिर्फ़ लब छू लेने भर से
रूह नहीं भीग जाते,
उजाड़ हो कर
तुम्हें और
बरसना होगा, हर इक बूंद
की अपनी ही अहमियत
होती है, बादल
बनने से
पहले तुम्हें और दहकना
होगा। अभी तो कश्ती
है मझधार में
कहीं, न
जाने कितनी देर साहिल
पे तुम्हें और ठहरना
होगा, इतना
आसां भी
नहीं जीस्त का शीशी ए
अतर हो जाना, हर
हाल में तुम्हें
देर तक
और महकना होगा। इस
शहर के अपने अलग
हैं दस्तूर, सूरज
निकलने से
पहले
यूँ ही काँटों की सेज पे - -
तुम्हें और तड़पना
होगा। सिर्फ़
लब छू
लेने भर से रूह नहीं भीग
जाते, उजाड़ हो कर
तुम्हें और
बरसना होगा।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
art by richard schmid
रूह नहीं भीग जाते,
उजाड़ हो कर
तुम्हें और
बरसना होगा, हर इक बूंद
की अपनी ही अहमियत
होती है, बादल
बनने से
पहले तुम्हें और दहकना
होगा। अभी तो कश्ती
है मझधार में
कहीं, न
जाने कितनी देर साहिल
पे तुम्हें और ठहरना
होगा, इतना
आसां भी
नहीं जीस्त का शीशी ए
अतर हो जाना, हर
हाल में तुम्हें
देर तक
और महकना होगा। इस
शहर के अपने अलग
हैं दस्तूर, सूरज
निकलने से
पहले
यूँ ही काँटों की सेज पे - -
तुम्हें और तड़पना
होगा। सिर्फ़
लब छू
लेने भर से रूह नहीं भीग
जाते, उजाड़ हो कर
तुम्हें और
बरसना होगा।
* *
- शांतनु सान्याल
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