उसने कहा था, मेरी वजह -
से है लुत्फ़ ए सावन,
वरना इस
दहकते
बियाबां में कुछ भी नहीं। -
उसने कहा था, मुझ
से है तमाम
आरज़ूओं
के चिराग़ रौशन, वरना इस
बुझते जहां में कुछ
भी नहीं। यूँ
तो हर शै
आज भी है अपनी जगह -
मौजूद, सही सलामत,
वही आसमान
वही चाँद
सितारे, फूलों में वही रंग सारे,
सावन में आज भी है वही
बरसने की दीवानगी,
नदियों में वही
अंतहीन
किनारों को जज़्ब करने की -
तिश्नगी, फिर भी न
जाने क्यूँ उसने
कहा था
मेरे बग़ैर इस गुलिस्तां में कुछ
भी नहीं।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
art by david chefitz
से है लुत्फ़ ए सावन,
वरना इस
दहकते
बियाबां में कुछ भी नहीं। -
उसने कहा था, मुझ
से है तमाम
आरज़ूओं
के चिराग़ रौशन, वरना इस
बुझते जहां में कुछ
भी नहीं। यूँ
तो हर शै
आज भी है अपनी जगह -
मौजूद, सही सलामत,
वही आसमान
वही चाँद
सितारे, फूलों में वही रंग सारे,
सावन में आज भी है वही
बरसने की दीवानगी,
नदियों में वही
अंतहीन
किनारों को जज़्ब करने की -
तिश्नगी, फिर भी न
जाने क्यूँ उसने
कहा था
मेरे बग़ैर इस गुलिस्तां में कुछ
भी नहीं।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
art by david chefitz
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (20-06-2015) को "समय के इस दौर में रमज़ान मुबारक हो" {चर्चा - 2012} पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक