आख़री पहर, जब झर
गए सभी पारिजात,
लापता चाँद
था रात
की ढलान में कहीं,
उन्हीं पलों में
ले गए
तुम सुरभित रूह मेरी,
अब प्यासा
जिस्म
भटके है बियाबां में
कहीं, यूँ तो
चलना
था मुझे भी उजालों
के हमराह,
लेकिन
खो गए अक्स, वक़्त
ए कारवां में कहीं,
वो चेहरे जो
घूमते
रहे मेरे अतराफ़ - - -
उम्रभर, कोहरे
के साथ
घुल से गए बिहान में
कहीं, आख़री पहर,
जब झर गए
सभी
पारिजात, लापता चाँद
था रात की ढलान
में कहीं।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
christina nguyen art
गए सभी पारिजात,
लापता चाँद
था रात
की ढलान में कहीं,
उन्हीं पलों में
ले गए
तुम सुरभित रूह मेरी,
अब प्यासा
जिस्म
भटके है बियाबां में
कहीं, यूँ तो
चलना
था मुझे भी उजालों
के हमराह,
लेकिन
खो गए अक्स, वक़्त
ए कारवां में कहीं,
वो चेहरे जो
घूमते
रहे मेरे अतराफ़ - - -
उम्रभर, कोहरे
के साथ
घुल से गए बिहान में
कहीं, आख़री पहर,
जब झर गए
सभी
पारिजात, लापता चाँद
था रात की ढलान
में कहीं।
* *
- शांतनु सान्याल
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