06 जुलाई, 2015

ख़ामोशी - -

उस ख़ामोशी में है कोई
मुक्कमल जज़्बात
या सदियों से
ठहरा
हुआ कोई तूफ़ान। इक
कहानी जिसे लोग
दोहराते हैं
बारम्बार
फिर भी जो पड़ा रहता है 

यूँ ही बिलाउन्वान।
ज़िन्दगी की है
अपनी ही
अलग
दिलकशी, कभी इक बूंद
भी नहीं मय्यसर
लबों को,और
कभी
सैलाबी आसमान। उन
पोशीदा लकीरों की
गहराई, अब
तक किसी
को न
समझ आई, हर तरफ
है इक पुरअसरार
ख़ुश्बू, लेकिन
मुख़ातिब
नहीं 

कोई फूल और नहीं - -
नाज़ुक कोई 
गुलदान।

* *
- शांतनु सान्याल 

 http://sanyalsduniya2.blogspot.in/

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