न जाने कैसा है वो शीशा
ए अहसास, नज़र
हटते ही होता
है टूटने
का गुमान। क़रीब हो जब
तुम, लगे सारा
कायनात यूँ
हथेली
में बंद किसी जुगनू की -
मानिंद, ओझल होते
ही बिखरता है पल
भर में गोया
तारों भरा
नीला
आसमान। कई बार देखा
है उसे दिल के आईने
में,बारहा तलाशा
है उसे चश्म
ए समंदर
में यूँ
दूर तक डूब कर, फिर भी
इस इश्क़ ए तलातुम
में, राज़ ए गहराई
जानना नहीं
आसान।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
ए अहसास, नज़र
हटते ही होता
है टूटने
का गुमान। क़रीब हो जब
तुम, लगे सारा
कायनात यूँ
हथेली
में बंद किसी जुगनू की -
मानिंद, ओझल होते
ही बिखरता है पल
भर में गोया
तारों भरा
नीला
आसमान। कई बार देखा
है उसे दिल के आईने
में,बारहा तलाशा
है उसे चश्म
ए समंदर
में यूँ
दूर तक डूब कर, फिर भी
इस इश्क़ ए तलातुम
में, राज़ ए गहराई
जानना नहीं
आसान।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 24 जुलाई 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह ।
हटाएंसमस्त माननीय मित्रों को असंख्य धन्यवाद। नमन सह - -
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह ।
हटाएंबढ़िया ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह ।
हटाएंIt's very trouble-free to find out any topic on net as compared to
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हार्दिक आभार - - नमन सह ।
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