नेपथ्य में कहीं, कोई तो है
खड़ा अदृश्य,जो
मझधार में
भी
जीने की आस बढ़ा जाए।
मानो या न मानो,
अपना अपना
है ख़्याल,
पत्थरों
में कहीं है वो, या मिले
शिफ़र हाल, हर
हाल में
लेकिन वो ज़िन्दगी सजा
जाए। नेपथ्य में कहीं,
कोई तो है खड़ा
अदृश्य,
जो मझधार में भी जीने
की आस बढ़ा जाए।
दूर दूर तक
फैली है
उसकी निगाहों की रौशनी,
कोई चीज़ नहीं पोशीदा,
न कोई बात
अनसुनी,
हज़ार
पर्दों में भी वो अपनी झलक
दिखा जाए। नेपथ्य में
कहीं, कोई तो है
खड़ा
अदृश्य,जो मझधार में भी
जीने की आस बढ़ा
जाए।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
खड़ा अदृश्य,जो
मझधार में
भी
जीने की आस बढ़ा जाए।
मानो या न मानो,
अपना अपना
है ख़्याल,
पत्थरों
में कहीं है वो, या मिले
शिफ़र हाल, हर
हाल में
लेकिन वो ज़िन्दगी सजा
जाए। नेपथ्य में कहीं,
कोई तो है खड़ा
अदृश्य,
जो मझधार में भी जीने
की आस बढ़ा जाए।
दूर दूर तक
फैली है
उसकी निगाहों की रौशनी,
कोई चीज़ नहीं पोशीदा,
न कोई बात
अनसुनी,
हज़ार
पर्दों में भी वो अपनी झलक
दिखा जाए। नेपथ्य में
कहीं, कोई तो है
खड़ा
अदृश्य,जो मझधार में भी
जीने की आस बढ़ा
जाए।
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- शांतनु सान्याल
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