चलो फिर आज, सजल खिड़कियों
में कुछ जलरंग तसवीर उकेरें,
कुछ रंग जो छूट गए
अतीत के पन्नों
में कहीं,
चलो फिर आज, धूसर आकाश में
यूँ ही स्मृति अबीर बिखेरें।
कुछ काग़ज़ के नाव
रुके रुके से हैं,
हलकी
बारिश की चाह लिए, कुछ नन्हें -
नन्हें, गगन - धूलि फिर हैं
उभरने को बेक़रार,
चलों फिर खेलें
नदी -पहाड़
या लुक - छुप की वो छोटी छोटी -
मासूम अय्यारियां, फिर
सदियों से गुमशुदा
नदी है छलकने
को तैयार ।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
में कुछ जलरंग तसवीर उकेरें,
कुछ रंग जो छूट गए
अतीत के पन्नों
में कहीं,
चलो फिर आज, धूसर आकाश में
यूँ ही स्मृति अबीर बिखेरें।
कुछ काग़ज़ के नाव
रुके रुके से हैं,
हलकी
बारिश की चाह लिए, कुछ नन्हें -
नन्हें, गगन - धूलि फिर हैं
उभरने को बेक़रार,
चलों फिर खेलें
नदी -पहाड़
या लुक - छुप की वो छोटी छोटी -
मासूम अय्यारियां, फिर
सदियों से गुमशुदा
नदी है छलकने
को तैयार ।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (05-06-2015) को "भटकते शब्द-ख्वाहिश अपने दिल की" (चर्चा अंक-1997) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
हार्दिक आभार - - नमन सह ।
हटाएंVery nice post ...
जवाब देंहटाएंWelcome to my blog on my new post.
हार्दिक आभार - - नमन सह ।
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