उन्हें ख़बर ही नहीं, और हम दुनिया भुला बैठे,
वो हैं मशग़ूल कुछ यूँ अपने ही दायरे में
सिमटे हुए, और हम सब कुछ
भूल, उनको अपना बना
बैठे, न जाने कहाँ
किस दरिया
के सीने
में है डूबा सूरज, फ़िज़ा में है इक तैरता अँधेरा
बेइन्तहा, शाम तक तो सब कुछ ठीक
ही था, उसके बाद न जाने क्या
दिल में रोग लगा बैठे,
अभी तो है रात
का इक
लम्बा सफ़र बाक़ी, अभी अभी आँखों में उभरे
हैं कुछ ख़्वाबों के जुगनू, अभी अभी
साँसों में जगे हैं कुछ भीगे से
ख़ुशबू, न जाने ये
कैसा तिलिस्म
है उनकी
चाहत का, जिस्म तो सिर्फ़ जिस्म है इक शै
फ़ानी, जुनूं देखें कि हम रूह तक भुला
बैठे, उन्हें ख़बर ही नहीं, और
हम दुनिया भुला बैठे - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
unknown art source 5
वो हैं मशग़ूल कुछ यूँ अपने ही दायरे में
सिमटे हुए, और हम सब कुछ
भूल, उनको अपना बना
बैठे, न जाने कहाँ
किस दरिया
के सीने
में है डूबा सूरज, फ़िज़ा में है इक तैरता अँधेरा
बेइन्तहा, शाम तक तो सब कुछ ठीक
ही था, उसके बाद न जाने क्या
दिल में रोग लगा बैठे,
अभी तो है रात
का इक
लम्बा सफ़र बाक़ी, अभी अभी आँखों में उभरे
हैं कुछ ख़्वाबों के जुगनू, अभी अभी
साँसों में जगे हैं कुछ भीगे से
ख़ुशबू, न जाने ये
कैसा तिलिस्म
है उनकी
चाहत का, जिस्म तो सिर्फ़ जिस्म है इक शै
फ़ानी, जुनूं देखें कि हम रूह तक भुला
बैठे, उन्हें ख़बर ही नहीं, और
हम दुनिया भुला बैठे - -
* *
- शांतनु सान्याल
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thanks respected friend - - regards
जवाब देंहटाएंकिसको मै अच्छा कहूँ ? हर पंक्ति दिल में उतर गयी ,बहुत उम्दा रचना।
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें।
सादर मदन
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
thanks a lot respected friend - -
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