26 सितंबर, 2013

ख़्वाबों के परिंदे - -

किस तरह समझाएं उन्हें, हँसने की चाह 
में, आंसुओं ने अक्सर अपना 
वादा तोड़ दिया, हमने 
समझाया लाख 
मगर 
ज़िन्दगी ने हर क़दम पे ग़मों से नाता - -
जोड़ दिया, तुम्हारी ख़्वाहिशों की 
सतह थी, शायद आसमां 
से कहीं ऊपर, कुछ 
दूर तक तो 
उड़े 
मेरे ख़्वाबों के परिंदे, थक हार के आख़िर 
हमने भी, मजरूह ए वजूद का रूख़ 
मोड़ दिया, ये कम तो नहीं 
कि तुम्हारी निगाहों 
में अब  तलक 
हैं रौशन 
मेरी 
मुहोब्बत के चिराग़, इसलिए आजकल 
हमने अंधेरों से डरना छोड़ दिया,
किस तरह समझाएं उन्हें,
हँसने की चाह में, 
आंसुओं ने 
अक्सर 
अपना वादा तोड़ दिया - - - - - - - - - - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
oil painting candle light flower by nora macphail

1 टिप्पणी:

  1. कालीपद प्रसाद has left a new comment on your post "ख़्वाबों के परिंदे - -":

    मुहोब्बत के चिराग़, इसलिए आजकल
    हमने अंधेरों से डरना छोड़ दिया,
    किस तरह समझाएं उन्हें,हँसने की चाह में,
    आंसुओं ने अक्सर अपना वादा तोड़ दिया -
    बहुत सुन्दर पंक्तिया by mistake it was deleted Im sorry kaliprasad ji - - thanks a lot love and regards with respect

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