तेरी साँसों में कहीं, आज भी महकती है,
मेरी भावनाओं की ख़ुशबू, मानो या
न मानो, आज भी गहरी आँखों
में हैं कहीं, मुझे पाने की
अथक चाहत, जिसे
तूने मृगतृषा
समझा,
वो कुछ और नहीं, मेरी मुहोब्बत की थी
तपन, अब तलक तेरी हस्ती में
हूँ मैं शामिल, इस मरू
प्रांतर में इक मेरे
सिवाय कोई
बादल
का साया नहीं, और यही वजह है जो -
मुझे मुहाजिर होने नहीं देता,
* *
- शांतनु सान्याल
art by Alexei Butirskiy
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जब्त जर्रों में है इक तमन्ना लेकर..,
जवाब देंहटाएंपोशगुल हो ठहरी है शबनम..,
तेरे कदमों की आहट के..,
नर्म दबिश के तले..,
दम दिलासे..,
में हूँ मैं..,
के आहो उफ़ताद कहीं गैब न हो जाऊं...,
बेवजूद हो के तेरे गुलदानो में..,
दम तोड़ दू दालनों में..,
दफ्न गुलिस्ता में..,
कहीं मैं फ़ना न..,
हो जाऊं..,
हसरत है के बस तेरी निगाहेपोश रहूँ..,
और ज़िंदा रहूं उल्फत के आगोश में.....
माननीय मित्रों को असंख्य धन्यवाद - नमन सह
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