उन चश्म ए ज़िन्दां में ज़िन्दगी चाहती है,
ताउम्र क़ैद होना, उनसे मिल कर
मैं, ज़ीस्त ए ख़ानाबदोश
भूल गया, ये ज़मीं
वो आसमां,
कभी
थे बहोत आशना, न जाने क्या हुआ -
क्यूँ कर हुआ, आईना है मेरे
रूबरू लेकिन अफ़सोस
मैं अपना ही
अक्स
भूल गया, उस तस्वीर में हैं, जाने कितने
रंगीन मोड़, कितने उलझे राज़ ए
ज़िन्दगी, उन ख़ामोश
निगाहों को देख,
उफ़नते
ज़रियां का जोश ओ ख़रोश भूल गया - - -
* *
- शांतनु सान्याल
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शम्मे-फ़ानूस की तकदीर में तारीके-निशाँ है..,
जवाब देंहटाएंरंगेचाहत की तामीर नहीं होती..,
ये ता-शब् सुलगती है..,
हमनफ़स हो के..,
सहरे-बाम..,
तलक..,
स्याह शादाब है इसके नुरे-बारानी में..,
मै मशरूफ एक स्याह दानी में..,
कफे-दस्त में कलम है..,
कलमकारी में..,
तकदीर है..,
शमा की..,
सफ़्हे-हस्ती पे मैं रंगे-रौशनाई लिखू..,
शम्मे-तकदीर में हर्फ़ आशनाई का.....
असंख्य धन्यवाद - - नमन सह
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