15 जनवरी, 2013

चश्म ए ज़िन्दां - -

उन चश्म ए ज़िन्दां में ज़िन्दगी चाहती है, 
ताउम्र क़ैद होना, उनसे मिल कर 
मैं, ज़ीस्त ए  ख़ानाबदोश 
भूल गया, ये ज़मीं 
वो आसमां,
कभी 
थे बहोत आशना, न जाने क्या हुआ -
क्यूँ कर हुआ, आईना है मेरे 
रूबरू लेकिन अफ़सोस 
मैं अपना ही 
अक्स 
भूल गया, उस तस्वीर में हैं, जाने कितने 
रंगीन मोड़, कितने उलझे राज़ ए 
ज़िन्दगी, उन ख़ामोश 
निगाहों को देख,
उफ़नते 
ज़रियां का जोश ओ ख़रोश भूल गया - - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by Sekhar Roy








2 टिप्‍पणियां:

  1. शम्मे-फ़ानूस की तकदीर में तारीके-निशाँ है..,
    रंगेचाहत की तामीर नहीं होती..,
    ये ता-शब् सुलगती है..,
    हमनफ़स हो के..,
    सहरे-बाम..,
    तलक..,
    स्याह शादाब है इसके नुरे-बारानी में..,
    मै मशरूफ एक स्याह दानी में..,
    कफे-दस्त में कलम है..,
    कलमकारी में..,
    तकदीर है..,
    शमा की..,
    सफ़्हे-हस्ती पे मैं रंगे-रौशनाई लिखू..,
    शम्मे-तकदीर में हर्फ़ आशनाई का.....

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