वो परिशां था बहोत देख मेरी हालत
no idea about creator 1
ए जुनूं, उसे अंदाज़ कहाँ यूँ
परस्तिश में ख़ुद को
मिटा जाना,
न शमा कोई, न बज़्म की इफ़्त्ताह,
आसां कहाँ किसी की चाह में
जिस्म ओ जां को यूँ
जला जाना,
उस आशिक़ ए रूह की थी अपनी
ही ग़ैर मामूली वज़ाहत,
बेसदा हो दिल में
समा जाना,
न कोई सबूत, न ही शनाख्त की
गुंजाइश, उस शोला निहां
की तपिश में थी
इक बेनज़ीर
कशिश
मुमिकन कहाँ वर्ना इश्क़ में इस
तरह वजूद का पिघल
जाना - -
* *
- शांतनु सान्याल
परस्तिश - पूजा
बज़्म - महफ़िल
इफ़्त्ताह - शुरुआत ,
वज़ाहत - वर्णन ,
बेनज़ीर - निराला
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बज़्म - महफ़िल
इफ़्त्ताह - शुरुआत ,
वज़ाहत - वर्णन ,
बेनज़ीर - निराला
शोरे-शरर हूँ शोला हूँ के पोशीदा हूँ मैं
जवाब देंहटाएंशेरो-उनवाँ हूँ सनाख्वां हूँ कहाँ हूँ मैं
निगाहें-नाज के कतरों से
सितारों की चमक है
आहों अंदाज की
आवाज से
जमीं जर्रों में खनक है
आह ! कि मेरी आह से इक
कयामत ही बरपे
बर्क ब-रफ्तार
गिरे और
जर्रो-जमीं दरके
बेवजुद-जान बेरफ्त होकर
इसकी आगोश ही में
कहीं जब्त हो जाउँ.....
just extra ordinary creation - - thanks respected friend
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