नहीं चाहिए, वो मरहम जो ज़ख्म भर जाए -
बग़ैर इलामत के, कुछ और वक़्त
चाहिए मुझको दर्द ज़ाद
होने के लिए,
वो दुनिया जो कुरेदती है ख़ाक ए वजूद मेरा,
नहीं चाहिए, वो चेहरा फ़रिश्ता, जो
मसीहाई के नाम पर, दे जाए
फिर मुझे धोका, इक
मुश्त और ग़म
चाहिए मुझे,
मुक्कमल बर्बाद होने के लिए, रूह करती है
मिन्नतें, क़फ़स ए जुनूं से अक्सर,
चंद रोज़ और चाहिए मुझे,
ख़ुद से आज़ाद होने
के लिए - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
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