इक तलाश जो जिस्मो जान से हो गुज़र गया,
बराह रास्त न थे, ज़िन्दगी के मरहले फिर भी
बमुश्किल धीरे धीरे क़िस्मत तेरा असर गया,
इस राह की भी हैं अपनी ही दर्दे दास्ताँ लेकिन
हक़ीक़त जो भी हो, वो इब्दी तौर से संवर गया,
उस मंज़िल पे रौशन हैं, यूँ हज़ारों दवी चिराग़
दस्ते शमशीर का जत्था भी दो पल ठहर गया,
- शांतनु सान्याल
اک تلاش جو جسمو جان سے ہو گزر گیا،
براه راست نہ تھے، زندگی کے مرحلے پھر بھی
بمشکل دھیرے دھیرے قسمت تیرا اثر گیا،
اس راہ کی بھی ہیں اپنی ہی درد داستاں لیکن
حقیقت جو بھی ہو وہ ابدي طور سے سںور گیا،
اس منزل پہ روشن ہیں، یوں ہزاروں دوي چراغ
دستے شمشير کا جتتھا بھی دو پل ٹھہر گیا،
bahut sundar, badhai.
जवाब देंहटाएंthanks a lot respected friend
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