मध्य रात्रि
के सजल तरंगों में लिखती हों जैसे
प्रतिबिंबित कविताएँ, मेह
बरसे आधी रात या
छू जाए किसी
के आँखों
से निकलती, रहस्यमयी मद्धम नीली
रौशनी, दूर तक बिखरे हों जैसे
श्वेत रंगी वन्य कुसुम
या तुषार कण
पिघलने
को हों व्याकुल, कोई आहट जो घेरती है
मन को, या चांदनी में नहाये हुए
देवदार फेंकते हैं जादुई
प्रतिच्छाया, एक
मीठा सा
आभास या है कोई आसपास, बढ़ चले
हैं क़दम किसी की तरफ अनजान,
अनायास, न जाने कौन है
छुपा सा बहुत ही
नज़दीक,
भीगे भावनाओं के क़रीब, या ज़िन्दगी
चल रही ख़्वाब के
हमराह - -
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