बंद आँखों की दुनिया
मिलने और खोने में था अंतर केवल कुछ
क्षणों का, चिरस्थायी कहाँ आलिंगन,
बंद आँखों में था सम्पूर्ण व्योम
समाया, पलक खुलते ही
उठ गए सभी तारों
के समारोह,
भटक गयी हो शायद मेरी आवाज़ वादियों से -
गुज़रते, या बिखर गए हों स्वर लहर,
अच्छा ही हुआ तुमने न सुनी
वो आर्तनाद, एक थकन,
कुछ शून्यता, वो
प्रतिध्वनि
जो टूटती है बार बार, जुड़ने की उम्मीद लिए
हज़ार, झंझा में जैसे कोई दीपक चाहे
दीर्घ ज्वलन, डूबते तारों का वो
दिव्य अवतरण या जीने
की असीम अभिलाष
लिए मरू प्रांतर,
ह्रदय की
भी हैं अपनी ही मजबूरियां, ढूंढ़ता है विलुप्त
अपनापन, चाह कर हटा नहीं पाता
देह से लिपटे मोह वल्लरी,
अंतर से जुड़े असंख्य
मायावी तंतु,
चाहता
है आँखें बंद कर देखना स्वप्नों की दुनिया, या
वक्ष जड़ित जीने की कोई अमूल्य
वसीयत - -
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