जन्म सूत्र से गंतव्य का ठिकाना नहीं मिलता, गर्भाग्नि विहीन
पाषाण, कभी नहीं
पिघलता ।
लोग लहूलुहान भटकते रहे
शरणार्थी बन कर, ग़र
ज्ञात होता बिन
काँटे काँटा
नहीं
निकलता ।
सद्भावना के जूलूस में
हथियारबंद निकले
वो, अगर हम
एक बने
रहते
तो देश नहीं सुलगता ।
न जाने कितने वर्ण भेदों ने हमें
निरंतर बिखेरा, आज को
बदले बिन आसन्नकाल
नहीं सुधरता ।
- - शांतनु सान्याल
सुन्दर
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